आज जिस योग से हम परिचित हैं वह 10000 वर्षों से भी अधिक पूर्व भारत एवं विश्व के अन्य भागों में प्रांतीय सभ्यता के एक अंग के रूप में विकसित हुआ था| हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में पुरातात्विक खुदाई यों में ऐसी अनेक मूर्तियां मिली हैं जिसमें शिव और पार्वती को विभिन्न योगासनों में अंकित किया गया है |
शिव परम चेतना के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं पार्वती परम ज्ञान संकल्प और कर्म की साकार प्रतिमा मानी जाती हैं वही समस्त सृष्टि की कृत भी कही जाती है| ऊर्जा को कुंडलिनी शक्ति भी कहा जाता है जो सभी जीवो में प्रस्तुत है |
संपूर्ण विश्व में प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा योग विज्ञान का क्रमिक विकास किया गया योग के तत्व को विविध प्रतीकों रूप को और अलंकारिक भाषाओं के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है इसलिए योग रहस्य की झीनी चादर से ढका हुआ प्रतीत होता है कुछ परंपराओं की मान्यता है कि मानव जाति को उसके दिव्य स्वरूप की पहचान कराने के लिए प्राचीन ऋषियों और महात्माओं को योग ईश्वरीय वरदान के रूप में प्राप्त हुआ|